12 JYOTIRLING (ज्योतिर्लिंग): जानें इनके नाम, स्थान, उत्पत्ति और महत्व की पूरी जानकारी

12 ज्योतिर्लिंग (द्वादश ज्योतिर्लिंग) भगवान शंकर के भक्तों के लिए बहुत ही बड़ा आस्था का केन्द्र है | सभी 12 Jyotirling भगवान शंकर जी के आशीर्वादों से भरपूर और सभी पापों को दूर करके कष्ट हरनेवाले है | जो भी यहाँ जाता है, उसके जन्म-जन्मांतर के सभी पाप नष्ट हो जाते है | वैसे भी देखा जाए तो 12 Jyotirling उत्तर दिशा में उतराखंड के केदारनाथ, पूर्व में वैद्यनाथ, देवघर, दक्षिण में रामेश्वरम, तमिलनाडु, और पशिम में नागेश्वर, गुजरात अपनी-अपनी विशेषता लिए हुए है | प्रत्येक चारों दिशाओं में ये चार ज्योतिर्लिंग है और बाकि के 8 ज्योतिर्लिंग भी अलग-अलग स्थानों, राज्यों में है और सबकी विशेषता भी अलग है |

12 ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ इसके लिए द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत भी है, जिनका पाठ प्रतिदिन सुबह-शाम करने से भी हमारे सारे पाप नष्ट हो जाते है |

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12 ज्योतिर्लिंग क्या है और इसकी उत्पति कैसे हुई थी ?

आशुतोष भगवान शिव कि पूजा-आराधना सदियों से चली आ रही है | जिसमे लिंग पूजा का विशेष महत्व है | प्राचीन काल में सिन्धु सभ्यता के समय से ही भगवान शिव जी कि लिंग पूजा प्रचलित और महत्वपूर्ण हैं | भगवान भोलेनाथ के भक्त भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में है, जिनकी भक्ति और आस्था के कारण प्रत्येक शिव मंदिर में शिवलिंग की पूजा होती है |

लेकिन पूरे भारतवर्ष में केवल 12 ज्योतिर्लिंग है, जहाँ भगवान स्वयं ज्योतिपुंज के रूप में विराजित है और इन्ही स्थानों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है | मान्यता ऐसी है कि शिवलिंग की पूजा से अधिक महता ज्योतिर्लिंग के दर्शन की होती है | मान्यताओ के अनुसार अगर सिर्फ ज्योतिर्लिंग का दर्शन भी मिल जाए तो मनुष्य के जन्मो-जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है और उस मनुष्य का जीवन सुख-समृद्धि से पूर्ण हो जाता है |

मान्यता ऐसी भी है कि जहाँ-जहाँ भगवान शिव स्वयंभू के रूप में अर्थात स्वयं प्रकट हुए है, वहाँ-वहाँ ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए है जिनका दर्शन भक्तों के लिए किसी बड़े स्वपन को पूरा करने से भी ज्यादा बड़ा है |

ज्योतिर्लिंग का अर्थ | Meaning of Jyotirling

ज्योतिर्लिंग दो शब्दों से मिलकर बना है, ज्योति +लिंग | ज्योति का अर्थ होता है, व्यापक प्रकाश या चमक और लिंग का अर्थ होता है प्रतीक | अर्थात भगवान शंकर की चमक या आभा का प्रतीक |

पुराणों के अनुसार ज्योतिर्लिंग का अर्थ होता है व्यापक प्रकाश या ”ब्रहम आत्मलिंग ” | शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग 12 खंडो में बंटा हुआ है | मन, बुद्धि, माया, अहंकार, ब्रहम, चित्र, वायु, आकाश, जल, अग्नि और पृथ्वी की चमक | अर्थात ज्योतिपिंड या ज्योतिर्लिंग |

ज्योतिर्लिंगका महत्व | Importance of Jyotirling

ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग दोनों में भगवान शंकर जी की पूजा और प्रार्थना एक समान ही की जाती है, लेकिन ज्योतिर्लिंग स्वयंभू ही होते है और शिवलिंग स्वयंभू और स्थापित दोनों ही रूप में होते है |

हिंदू धर्म में मान्यता है कि किसी भी मनुष्य की धार्मिक यात्रा तब तक पूरी नही हो सकती जबतक वे 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन नही कर लेते है | भगवान शिव को मृत्युंजय भी कहा जाता है और इसलिए ये भी मान्यता है कि अगर 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर लिए जाए तो इससे मृत्यु का भी भय दूर हो जाता है और मनुष्य समस्त पाप एवं कष्टों से दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है |

12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान | 12 Jyotirling Name and Place in hindi

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात

12 jyotirling

ज्योतिर्लिंगों में पहले नंबर पर सोमनाथ मंदिर है, जो गुजरात राज्य के सौराषट्र क्षेत्र के बेरावल बंदरगाह के समीप स्थित है | ऐसी मान्यता है कि सोमनाथ मंदिर को चन्द्र देव ने सोने, सूर्य देव ने रजत से और भगवान श्री कृष्ण ने लकड़ी से बनवाया था | मान्यता यह भी है कि भगवान कृष्ण ने यही से भालुका तीर्थ में देह त्याग किया था और बैकुंठ गमन किया था | 

यहाँ तीन नदियों सरस्वती, कपिला और हिरण का महासंगम होता है | यहाँ त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है | सोमनाथ मंदिर धार्मिक कर्म कांड, नारायण बलि और पितृ गणों के श्राद्ध के लिए भी मुख्य रूप से प्रसिद्ध है | चैत्र माह, भार्द्रपद और कार्तिक माह में यहाँ श्राद्ध का विशेष महत्व माना जाता है |

2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्रप्रदेश

12 jyotirling

12 ज्योतिर्लिंगों में से दूसरे नंबर पर मलिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है, जो आंध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के किनारे श्री शैलपर्वत पर स्थित है | दक्षिण में इस ज्योतिर्लिंग को कैलाश के रूप में भी माना और जाना जाता है | मान्यता ऐसी है कि श्री शैल पर्वत पर जो भगवान शंकर जी की आराधना और पूजा करेंगे, उन्हें अश्वमेघ यज्ञ करने के समान ही लाभ होगा | मल्लिकार्जुन मंदिर दक्षिण के मंदिरों में एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमे पूजा-दर्शन करने से सारे दोष और पाप नष्ट हो जाते है |

इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि इस मंदिर का निर्माण एक बहुत ही ऊँचें पत्थर की चारदीवारी के बीचो बीच में स्थित है | इसकी दीवारों पर घोड़े और हाथियों की कलाकृतियाँ भी बनी हुई है | ग्रंथो में ये उल्लेख है कि माता पार्वती के अनेक नामों में से एक मल्लिका भी है और भगवान भोलेनाथ का एक नाम अर्जुन भी है, और इसी कारण इस मंदिर का नाम मल्लिकार्जुन है अर्थात शिव और पार्वती का मंदिर |

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन

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12 ज्योतिर्लिंगो में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है | इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि समुन्द्र मंथन के बाद जब देवगण अमृतकलश” को दानवों से बचाने के लिए वहाँ से भाग रहे थे, तो उनके हाथों में रखे अमृतकलश की कुछ बूंदे छलक कर धरती पर गिरी थी, और उज्जैन नगरी धरती के उन्हीं पवित्र स्थानों में से एक है | उज्जैन में ही महाकुम्भ मेला का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार होता है | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है, जैसे आकाश में तारक लिंग, पटल में घट्केश्वर लिंग है वैसे ही पृथ्वी पर महाकालेश्वर भी मान्यता प्राप्त शिवलिंग है |

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

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12 ज्योतिर्लिंगो में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है | इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि समुन्द्र मंथन के बाद जब देवगण अमृतकलश” को दानवों से बचाने के लिए वहाँ से भाग रहे थे, तो उनके हाथों में रखे अमृतकलश की कुछ बूंदे छलक कर धरती पर गिरी थी, और उज्जैन नगरी धरती के उन्हीं पवित्र स्थानों में से एक है | उज्जैन में ही महाकुम्भ मेला का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार होता है | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है, जैसे आकाश में तारक लिंग, पटल में घट्केश्वर लिंग है वैसे ही पृथ्वी पर महाकालेश्वर भी मान्यता प्राप्त शिवलिंग है |

12 ज्योतिर्लिंगों में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग चौथे (4) नंबर पर है | यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे हरियालियों के बीचों-बीच स्थित है | दरअसल यहाँ नर्मदा नदी का बहाव जहाँ से होता है, वह ऊ” के आकार में स्थित है | इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान शिव के परम भक्त कुबेर जी के द्वारा किया गया था | कुबेर जी के खजाना और पूजन के लिए भगवान शिवजी ने अपनी जटाओं से कावेरी नदी की उत्पत्ति की थी |

ऐसी भी मान्यता है कि इसी पवित्र स्थान पर ब्रम्हा जी के मुख से ऊँ” शब्द की उत्पत्ति हुई थी | इसलिए भी इस ज्योतिर्लिंग नाम ऊँकारेश्वर पड़ा है | ऊँकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में एक और भी मान्यता है कि भगवान शिव जी यहाँ शयन करने आते है और यहाँ माता पार्वती के साथ ही निवास करते है | यहाँ की विशेषताओं में एक यह भी है कि भगवान यहाँ माता पार्वती के साथ चौसर खेलते है | यहाँ प्रतिदिन शायन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के पास चौसर की बिसात बिछाई जाती है और गर्भगृह में शायन आरती के बाद यहाँ कोई नही आता लेकिन सुबह सारे पासे उलटे मिलते हैं | यहाँ शिव भक्तों में शयनशायन दर्शन भी विशेष रूप से प्रचलित है |

5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड

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12 ज्योतिर्लिंगों में यह ज्योतिर्लिंग 5वें स्थान पर है | यह उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है | उत्तराखंड में बर्फ़बारी और अत्यधिक ठंड के कारण इस मंदिर के कपट साल में छह महीने (Six Months) के लिए ही खुलते है | अप्रैल माह से शुरू होकर नवंबर माह में इसके कपाट बंद हो जाते है | धार्मिक मान्यताओं में इस मंदिर को कैलाश पर्वत के जितना ही महत्वपूर्ण माना जाता है | इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान केदारनाथ स्वयंभू के रूप में प्रकट हुए है और बाहर नंदीभगवान की प्रतिमा भी विराजमान है | मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड में ही स्थित बद्रीनाथ धाम का दर्शन अगर केदारनाथ धाम के दर्शन के बाद किया जाए तो यह और भी शुभ और फलदायी होता है |

6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

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12 ज्योतिर्लिंगों में यह ज्योतिर्लिंग 6वें स्थान पर है | यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में पुणे से लगभग 110-115 किलोमीटर दूर सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है | सह्याद्रि पर्वत की हरियाली वादियों से घिरा यह ज्योतिर्लिंग भीमा नदी के उदगम स्थल पर शिराधन क्षेत्र में स्थित है | यह ज्योतिर्लिंग मोटा दिखता है, इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है | इस ज्योतिर्लिंग/शिवलिंग की मान्यता यह भी है कि यहाँ कुंभकर्ण के पुत्र भीमेश्वर का वध स्वयं भगवान् शंकर जी ने किया था और नदी का नाम भी भीमा है, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमशंकर ज्योतिर्लिंग है | इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन मात्र करने से व्यक्ति समस्त दुखों से मुक्त हो जाता है, ऐसी मान्यता है |

7. काशी विश्वनाथ या विशेश्वर ज्योतिर्लिंग

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12 ज्योतिर्लिंगों में यह ज्योतिर्लिंग 7वें नंबर पर है | काशी विश्वनाथ मंदिर गंगा नदी के तट पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है | मान्यता है की काशी नगर भगवन शिव के त्रिशूल पर विराजमान है, और तीनों लोकों में सबसे पवित्र एवं न्यारी नगरी है | ऐसे में ज्योतिर्लिंग के दायें भाग में माँ पार्वती और बाएँ भाग में भगवान् भोलेनाथ अत्यंत मोहक रूप में विराजमान है | जो इस ज्योतिर्लिंग की महता को और भी बढ़ा देता है | यह ज्योतिर्लिंग दो भागों में विभाजित है, जो अपने आप में अनोखा है |

ऐसी मान्यता है कि रामचरित मानस की रचना करने वाले तुलसीदास भी भगवान् शिव के इस मंदिर में आ चुके है | साथ ही साथ आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद भी यहाँ आते रहे है | इस मंदिर को सन 1780 में महारानी अहिल्या बाई होल्कर के द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया था और फिर बाद में महाराणा रंजीत जी के द्वारा इस मंदिर का पुनः जीर्कोणोद्धार हजार किलो सोने से 1853 में करवाया गया था | इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से सारे पाप गंगा में धुल जाते है, और हमारे सारे संकट दूर हो जाते है, ऐसी मान्यता है | इस मंदिर के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि जब प्रलय आएगा तो भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय टल जाने के बाद कशी को पुन: उसी जगह पर रख भी देंगे |

8. त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक

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12 ज्योतिर्लिंग में यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले के पंचवटी से 18 km की दूरी पर स्थित है | यह मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है | मान्यता है कि ब्रह्गिरी के निकट गोदावरी नही कि उत्पत्ति यही से हुई थी | मान्यता यह भी है कि ऋषि गौतम और गोदावरी नदी के आग्रह अनुसार भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है | चूकिं भगवान शिव के अनेको नामों में से एक और नाम त्रयंबकेश्वर भी है, इसीलिए यहाँ के ज्योतिर्लिंग को भी त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है | चूकिं यह मंदिर तीन पहाड़ियों ब्रम्ह्गिरी, नीलगिरी और कालगीरी के बीचो बीच स्थित है और इस मंदिर में भगवान शिव, विष्णु और ब्रम्हा जी का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन लिंगम (भगवान शिव के एक प्रतिष्ठित रूप) के रूप में भी है | इसलिए भी इस मंदिर का नाम त्रयंबकेश्वर रखा गया है |

9. वैधनाथ धाम ज्योतिर्लिंग, देवघर

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12 ज्योतिर्लिंग में से एक वैधनाथ धाम मंदिर झारखण्ड राज्य के देवघर जिले में स्थित है | वैधनाथ धाम” में वैधनाथ भगवान शंकर जी के अनेको नामों में से एक है | वही देवघर का अर्थ है देवों का घर” अर्थात अनेकों देवताओं का निवास स्थान | इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ माता सती का हृदय गिरा था, इसलिए यह एक शक्ति पीठ भी है | वैधनाथ ज्योतिर्लिंग कि स्थापना लंकापति रावण के द्वारा की गई थी और रावण भगवान् शिव के भक्तों में बहुत बड़े भक्त थे | उनके द्वारा ही शिव तांडव स्त्रोत कि राचन की गई थी | वैधनाथ धाम की एक खासियत ये भी है कि यहाँ पर मांगी हुई हर कामना पूर्ण होती है, इसलिए इसे कामना लिंग” भी कहा जाता है | यहाँ सावन मास में कांवरिया यात्रा अत्यंत प्रसिद्ध है |

10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, द्वारका

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11. रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु

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12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

12 ज्योतिर्लिंग में यह ज्योतिर्लिंग 12वें स्थान पर है | यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के दौलताबाद के पास स्थित है | यह ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर और घृष्णेश्वर” नाम से प्रसिद्ध है | इस मंदिर में प्रवेश से पहले पुरुषों को अपने ऊपर के अंगवस्त्र उतारने पड़ते है | यहाँ के बारे में मान्यता है कि इस मंदिर को देवी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था | इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग भगवान् शिव के परम भक्त घुश्मा के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर स्वंय प्रकट होने के कारण हुआ है | इसलिए इसे घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है | यह ज्योतिर्लिंग सबसे अंतिम नंबर पर है, इसलिए ऐसी मान्यता है कि यहाँ पूजा-अर्चना के बाद आत्मिक शान्ति मिलती है और सारे पाप एवं कष्ट दूर हो जाते है |

अंततः दोस्तों, यह कहना चाहती हूँ कि अगर किसी भी कारण से आप द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन नही कर पते हैं, तो मेरे द्वारा दिए गए विडियो को देखें और उपरोक्त 12 ज्योतिर्लिंग (द्वादश ज्योतिर्लिंग) के स्त्रोत/मंत्र को पढ़े और अपने आप को सभी पापों से मुक्त कर भगवान् शिव जी के सभी आशीर्वादों से फलीभूत हो |

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत

video source – youTube

अंत में,

दोस्तों, आशा करती हूँ कि आज का आर्टिकल 12 ज्योतिर्लिंग (JYOTIRLING)- जानें ज्योतिर्लिंग के नाम, स्थान और महत्व की पूरी जानकारी आप सभी को पसंद आएगी | यदि आप इससे संबंधित कोई जानकारी या सुझाव देना चाहे तो प्लीज़ कमेंट करें |

Thank you,

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